Qateel Shifai Ghazal Sadmy tu hai mhy bhe k tujhy sy juda own men....
غزل
صدمے تو ہے مجھے بھی کہ تجھ سے جدا ہوں میں
لیکن یہ سوچتا ہوں کہ اب تیرا کیا ہوں میں
میں خودکشی کے جرم کا کرتا ہوں اعتراف
اپنے بدن کی قبر میں کب سے گڑا ہوں میں
کس کس کا نام لاؤں زباں پر کہ تیرے ساتھ
ہر روز ایک شخص نیا دیکھتا ہوں می ں
کیا جانے کس ادا سے لیا تو نے میرا نام
دنیا سمجھ رہی ہے کہ سچ مچ ترا ہون میں
پہنچا جو تیرے در پہ تو محسوس یہ ہوا
لمبی سی ایک قطار میں جیسے کھڑا ہوں میں
لےمیرے تجربوں سے سبق اے میرے رقیب
دو چار سال عمر میں تجھ سے بڑا ہوں میں
جاگا ہوا ضمیر وہ آئینہ ہے قتیل
سونے سے پہلے روز جسے دیکھتا ہوں میں
قتیل شفائی
तुमसे बिछड़ कर मैं भी हैरान हूँ
लेकिन मुझे आश्चर्य है कि अब मैं तुम्हारे लिए क्या हूँ
मैंने खुदकुशी का गुनाह कबूल किया
मुझे कब से मेरे शरीर की कब्र में दफनाया गया है?
मैं किसका नाम तेरे साथ अन्यभाषा में लाऊं?
हर दिन एक नया इंसान देखता हूँ
आपको मेरा नाम कैसे मिला?
दुनिया समझती है कि सच में
अपने दरवाजे पर आएं और इसे महसूस करें
मैं एक लंबी लाइन में खड़ा हूँ
मेरे अनुभवों से सबक हे मेरे प्रतिद्वंद्वी
मैं तुमसे दो या चार साल बड़ा हूँ
जाग्रत अंतःकरण हत्या का दर्पण है
सोने से एक दिन पहले मैं देखता हूं
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